पाक-अधिकृत कश्मीर में जनविद्रोह तेज, हड़ताल के बीच सैन्य दमन की कोशिश

पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थानीय आबादी का पाकिस्तानी प्रशासन के खिलाफ जमा हुआ गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा है। ‘पब्लिक एक्शन कमेटी’ के आह्वान पर 29 सितंबर से शुरू हुई अनिश्चितकालीन हड़ताल ने पूरे क्षेत्र के जनजीवन को ठप कर दिया है, जिससे एक गहरे संकट ने जन्म लिया है।
सैन्य कार्रवाई और शटरडाउन का माहौल
हालात को काबू में करने के बजाय, पाकिस्तानी प्रशासन ने जनता के गुस्से को दबाने का रास्ता चुना है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस्लामाबाद से लगभग 3,000 अतिरिक्त सैनिकों को मुजफ्फराबाद भेजा गया है। पूरे क्षेत्र में सुरक्षा बलों की भारी तैनाती के साथ-साथ मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं, जिससे एक डर का माहौल बन गया है। स्कूल, कॉलेज, बाजार और सरकारी दफ्तर पूरी तरह से बंद हैं।
जनाक्रोश के मुख्य कारण
इस संकट की जड़ पाकिस्तान सरकार की वह नीतियाँ हैं, जिन्होंने दशकों से इस क्षेत्र के लोगों को आर्थिक और राजनीतिक उपेक्षा का शिकार बनाया है। प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांगें इस उपेक्षा और शोषण की कहानी बयां करती हैं:
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राजनीतिक बहिष्कार: PoK विधानसभा में पाकिस्तान से आकर बसे प्रवासियों के लिए आरक्षित 12 सीटों को खत्म करने की मांग। इसे स्थानीय जनता की राजनीतिक आवाज दबाने का एक जरिया माना जाता है।
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शोषण का आरोप: क्षेत्र में बनी जल विद्युत परियोजनाओं से मिलने वाली रॉयल्टी का उचित भुगतान सुनिश्चित करना। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान इन संसाधनों का लाभ उन्हें दिए बिना हड़प रहा है।
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भ्रष्टाचार और भेदभाव: सरकारी अधिकारियों की VIP संस्कृति और अतिरिक्त भत्तों को खत्म करने के साथ-साथ बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की मांग भी प्रमुख है।
सुरक्षा बलों में भी असंतोष
दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तानी प्रशासन के खिलाफ नाराजगी सिर्फ आम जनता तक सीमित नहीं है। रिपोर्ट्स से पता चलता है कि पहले से तैनात स्थानीय सुरक्षा बलों के जवान भी समान वेतन और भत्तों की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।
पब्लिक एक्शन कमेटी के नेता शौकत अली मीर ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि “पाकिस्तान सरकार ने PoK के लोगों को लंबे समय तक उपेक्षा और कठिनाई में रखा है और अब बदलाव का समय आ गया है।”
फिलहाल, पूरा इलाका एक सैन्य चौकी में तब्दील हो गया है और तनाव के बीच जीवन अस्त-व्यस्त पड़ा है। ऐसा लगता है कि पाकिस्तानी प्रशासन के दमनकारी रवैये ने इस संकट को और गहरा दिया है।