H-1B वीजा में भूकंप: ट्रंप प्रशासन ने लॉटरी सिस्टम खत्म करने का ऐलान किया, अब सिर्फ High-Salary वालों को मिलेगा प्राथमिकता

अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने H-1B वीजा नियमों में ऐतिहासिक बदलाव का प्रस्ताव पेश किया है। इसके तहत दशकों से चली आ रही रैंडम लॉटरी प्रणाली को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा और उसकी जगह वेतन-आधारित चयन प्रक्रिया लागू की जाएगी।
क्या है नया प्रस्ताव?
नई प्रणाली के अनुसार, H-1B वीजा का आवंटन अब उम्मीदवार के स्किल लेवल और वेतन के आधार पर होगा। उम्मीदवारों को उनके वेतन के हिसाब से चार स्तरों में बांटा जाएगा:
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Level IV (सबसे उच्च वेतन): चयन पूल में नाम 4 बार डाला जाएगा
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Level I (सबसे कम वेतन): चयन पूल में नाम सिर्फ 1 बार डाला जाएगा
इसका सीधा मतलब है कि high-salary offer वाले अनुभवी पेशेवरों के चयन की संभावना नए ग्रैजुएट्स के मुकाबले चार गुना अधिक होगी।
नए ग्रैजुएट्स के लिए मुश्किलें
यह बदलाव भारत समेत दुनिया भर के ताजा स्नातकों और करियर की शुरुआत कर रहे पेशेवरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। अमेरिकी टेक उद्योग ने भी चेतावनी दी है कि इससे नए टैलेंट की भर्ती पर गंभीर असर पड़ेगा।
प्रोजेक्ट फायरवॉल: दुरुपयोग पर सख्ती
अमेरिकी श्रम विभाग ने H-1B वीजा के दुरुपयोग को रोकने के लिए ‘प्रोजेक्ट फायरवॉल’ शुरू किया है। इसके तहत:
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वीजा उल्लंघनों की सीधी जांच होगी
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दोषी कंपनियों को वीजा कार्यक्रम से प्रतिबंधित किया जा सकेगा
बढ़ी फीस और कानूनी अड़चनें
व्हाइट हाउस ने H-1B वीजा आवेदन शुल्क बढ़ाकर $100,000 (लगभग 1 करोड़ रुपये) कर दिया है, जो 21 सितंबर से लागू हो चुका है। हालांकि यह शुल्क सिर्फ नए आवेदनों पर ही लागू होगा।
इन बदलावों के खिलाफ कानूनी चुनौतियों की भी संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रस्ताव इमिग्रेशन कानूनों का उल्लंघन कर सकता है।
क्यों महत्वपूर्ण है H-1B?
H-1B वीजा अमेरिकी टेक कंपनियों के लिए जीवनरेखा की तरह है, जिसके through वे भारत और चीन जैसे देशों से कुशल पेशेवरों को नियुक्त करते हैं। हर साल सिर्फ 85,000 नए वीजा जारी होते हैं, जिनमें से 20,000 मास्टर्स डिग्री धारकों के लिए आरक्षित हैं।
निष्कर्ष
ट्रंप प्रशासन के इन कदमों को ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का हिस्सा माना जा रहा है। जहां एक ओर यह बदलाव अमेरिकी कंपनियों को high-skill professionals को आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहित करेगा, वहीं दूसरी ओर भारतीय आईटी पेशेवरों और नए स्नातकों के लिए अमेरिका का सपना और मुश्किल हो गया है।