पश्चिमी UP में सपा की बड़ी रणनीति: 2027 के चुनाव के लिए अखिलेश यादव ने मुस्लिम-गुर्जर गठजोड़ पर जोर दिया

2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारियों के तहत समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपने सबसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र पश्चिमी यूपी में एक नई रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव अब केवल मुस्लिम वोटबैंक पर निर्भर न रहकर, गुर्जर समुदाय को जोड़कर एक नया चुनावी समीकरण बनाने में जुटे हैं।
चुनौती और रणनीति:
2022 के चुनावों में आरएलडी के साथ गठबंधन के बावजूद सपा को सीमित सफलता मिली थी। अब जब आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी एनडीए में हैं, सपा के लिए केवल मुस्लिम वोटों के भरोसे जीतना मुश्किल है। इसीलिए अखिलेश यादव ने मुस्लिम-गुर्जर गठजोड़ पर फोकस किया है। माना जा रहा है कि अगर यह समीकरण कामयाब रहा, तो पश्चिमी यूपी में सपा के लिए 2027 का चुनाव निर्णायक साबित हो सकता है।
गुर्जर वोटों की अहमियत:
पश्चिमी यूपी के गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ, बिजनौर, संभल और सहारनपुर जैसे महत्वपूर्ण जिलों में गुर्जर समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है। ओबीसी वर्ग का यह समुदाय राजनीतिक और आर्थिक रूप से मजबूत माना जाता है। ऐतिहासिक रूप से यह वोट बैंक कांग्रेस, फिर सपा-बसपा और 2014 के बाद से बीजेपी के साथ रहा है। सपा की कोशिश है कि इन वोटों को फिर से अपने पक्ष में किया जाए।
सपा की तैयारियाँ:
सपा ने इस मिशन के लिए ‘गुर्जर चौपाल’ कार्यक्रम शुरू किया है, जिसकी अगुवाई पार्टी प्रवक्ता राजकुमार भाटी कर रहे हैं। अब तक चार चौपालें हो चुकी हैं और प्रदेश के 34 जिलों के 132 विधानसभा क्षेत्रों में ऐसे कार्यक्रमों की योजना है। पार्टी ने दिल्ली में लगभग 60 गुर्जर संगठनों के साथ बैठक भी की है। नवंबर में ग्रेटर नोएडा में अखिलेश यादव की एक बड़ी रैली भी प्रस्तावित है।
भाटी के मुताबिक, “बीजेपी ने गुर्जर समाज को अनदेखा किया है। योगी सरकार में एक भी गुर्जर कैबिनेट मंत्री नहीं है। अब गुर्जर समाज सपा से उम्मीद लगाए हुए है।”
इतिहास और भविष्य:
मुलायम सिंह यादव के जमाने से सपा में गुर्जर नेताओं की मजबूत भूमिका रही है। अखिलेश यादव उसी रणनीति को दोहरा रहे हैं। हाल में मेरठ के मवाना में शहीद धनसिंह कोतवाल (एक गुर्जर नायक) की मूर्ति का अनावरण इसी दिशा में एक सोचा-समझा कदम माना जा रहा है।