35 साल बाद भी जिंदा है श्याम सिंह की विरासत, ढाई लाख की कुश्ती जीतकर कलुआ गुर्जर बना हीरो

पिछले 35 सालों से यह दृश्य हर साल दोहराया जाता है। मिट्टी का अखाड़ा, गरजते पहलवान और उन्हें उत्साह से देखते हजारों की भीड़। स्वर्गीय प्रधान श्याम सिंह की पुण्यतिथि पर आयोजित होने वाला यह विशाल दंगल सिर्फ एक खेल आयोजन नहीं, बल्कि एक सामाजिक परंपरा बन चुका है, जो इस बार भी पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय रहा।
रात भर चली 350 कुश्तियाँ, ढाई लाख का इनाम रहा आकर्षण
पूर्व एमएलसी जितेंद्र यादव के नेतृत्व में आयोजित इस दंगल में 350 से ज्यादा कुश्तियाँ हुईं, जो रात 9:30 बजे तक चलती रहीं। हालाँकि, सबकी निगाहें उस अंतिम और सबसे बड़े मुकाबले पर टिकी थीं, जिसका इनाम ढाई लाख रुपये रखा गया था। इस जोरदार मुकाबले को कलुआ गुर्जर ने अपने दम-खम से जीतकर विजेता का तमगा हासिल किया और क्षेत्र का नाम रोशन किया। एक लाख, 51,000 और 21,000 रुपये की अन्य इनामी कुश्तियों ने भी माहौल में रोमांच बनाए रखा।
बड़ी हस्तियों ने की शिरकत, कैप्टन मलखान सिंह ने बढ़ाया सम्मान
इस खेल महाकुंभ की शोभा केन्द्रीय राज्य मंत्री बी.एल. वर्मा, उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह, पूर्व सांसद डी.पी. यादव और दादरी विधायक तेजपाल नागर जैसे गणमान्य लोगों ने बढ़ाई। सात बार के राष्ट्रीय चैंपियन कैप्टन मलखान सिंह की मौजूदगी ने युवा पहलवानों के लिए इस आयोजन को और भी खास बना दिया।
दंगल से ज्यादा, एक सपने की कहानी है यह आयोजन
यह दंगल केवल पहलवानों का हुनर नहीं दिखाता, बल्कि श्याम सिंह के सपनों को जिंदा रखता है। एक ऐसे व्यक्ति के सपने, जिन्होंने बेटियों की शिक्षा के लिए स्कूल की नींव रखी, गरीबों के लिए जमीन और प्लॉट का इंतजाम किया और एक शानदार स्टेडियम बनवाने की नींव रखी। उनके निधन के बाद, उनके भाई डी.पी. यादव और बेटे जितेंद्र यादव ने इस विरासत को संभाला और इसे और ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
निष्कर्ष:
35वें दंगल की यह सफलता दिखाती है कि श्याम सिंह का सपना आज भी जिंदा है। यह आयोजन हर साल न सिर्फ नए चैंपियन गढ़ रहा है, बल्कि गाँव की एकजुटता और सामाजिक सद्भाव का एक जीता-जागता उदाहरण भी पेश कर रहा है।